Regional Business Development Executive (Eco-Evangelist aka इको प्रसारक) के लिये अभी आवेदन करें; 1 जिले में सिर्फ 1 ही पोस्ट है।
Please prefer one story, out of following A,B,C,D or E or make your own out of them.
A 45कौस्तुभ एक गरीब किसान का मेधावी बेटा था। उसने शहर जाकर पढ़ाई की, लेकिन नौकरी नहीं मिली। इसलिए उसने इकोहब में इको-प्रसारक के रूप में काम करना शुरू किया। उसने जिले के ट्यूटरों को इकोहब के बारे में बताया, जिससे कई छात्रों को नौकरी मिली।
B 314
कौस्तुभ एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुआ था। उसके पिता खेती करते थे, लेकिन वह बहुत गरीब थे। कौस्तुभ के माता-पिता चाहते थे कि वह बड़ा होकर एक नौकरी करे और उनकी गरीबी दूर करे।
कौस्तुभ बचपन से ही मेधावी था, और उसे पढ़ाई में बहुत रुचि थी। लेकिन उसके गांव में पढ़ाई-लिखाई का माहौल उतना अच्छा नहीं था। इसलिए कौस्तुभ ने शहर जाकर पढ़ाई करने का फैसला किया।
शहर में पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए कौस्तुभ को कोचिंग सेंटर में नौकरी करनी पड़ी। लेकिन कौस्तुभ ने देखा कि कोचिंग सेंटरों में बड़े-बड़े सपने दिखाकर छात्रों से पैसे वसूले जाते हैं। लेकिन छात्रों को नौकरी नहीं मिलती।
कौस्तुभ ने फैसला किया कि वह कुछ ऐसा करेगा जिससे गांव के लोगों को भी रोजगार मिल सके। वह एक बागवान बनना चाहता था, जो लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सके।
कौस्तुभ ने इकोहब में इको-प्रसारक के रूप में काम करना शुरू किया। इकोहब एक कंपनी है जो लोगों को काम करने के अवसर प्रदान करती है। कौस्तुभ का काम था कि वह जिले के ट्यूटरों को इकोहब के संदेश उनके पूर्व छात्रों में प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित करे।
कौस्तुभ की मेहनत रंग लाई। जल्द ही कई ट्यूटरों ने इकोहब के संदेश उनके पूर्व छात्रों में प्रसारित करना शुरू कर दिया। उनके कई विद्यार्थियों को भी काम मिल गया, और वे अच्छी कमाई करने लगे।
कौस्तुभ की सफलता से जिले के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। वे कौस्तुभ को एक नायक के रूप में देखने लगे।
कौस्तुभ का अब नया लक्ष्य था कि वह जिले के हर युवा को इकोहब में काम करने के लिए प्रोत्साहित करे। वह चाहता था कि हर युवा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
नैतिक
कौस्तुभ की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम मेहनत करें और अपने लक्ष्यों के लिए दृढ़ रहें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
C 339कौस्तुभ: एक बागवान की कहानी
पृष्ठभूमि
कौस्तुभ एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुआ था। उसके पिता खेती करते थे, लेकिन वह बहुत गरीब थे। कौस्तुभ के माता-पिता चाहते थे कि वह बड़ा होकर एक नौकरी करे और उनकी गरीबी दूर करे।
कौस्तुभ का सपना
कौस्तुभ बचपन से ही मेधावी था, और उसे पढ़ाई में बहुत रुचि थी। वह एक बागवान बनना चाहता था, जो लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सके।
शहर का सपना
कौस्तुभ के गांव में पढ़ाई-लिखाई का माहौल उतना अच्छा नहीं था। इसलिए कौस्तुभ ने शहर जाकर पढ़ाई करने का फैसला किया।
शहर में आघात
लेकिन जब वह बड़ा हुआ, तो उसे पता चला कि उसके लिए शहर में नौकरी पाना उतना आसान भी नहीं है। शहर में पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए कौस्तुभ को कोचिंग सेंटर में नौकरी करनी पड़ी।
नया लक्ष्य
कौस्तुभ ने देखा कि कोचिंग सेंटरों में बड़े-बड़े सपने दिखाकर छात्रों से पैसे वसूले जाते हैं। लेकिन छात्रों को नौकरी नहीं मिलती। कौस्तुभ ने फैसला किया कि वह कुछ ऐसा करेगा जिससे गांव के लोगों को भी रोजगार मिल सके।
इकोहब में इको-प्रसारक
कौस्तुभ ने इकोहब में इको-प्रसारक के रूप में काम करना शुरू किया। इकोहब एक कंपनी है जो लोगों को काम करने के अवसर प्रदान करती है।
सफलता
कौस्तुभ की मेहनत रंग लाई। जल्द ही कई ट्यूटरों ने इकोहब के संदेश उनके पूर्व छात्रों में प्रसारित करना शुरू कर दिया। उनके कई विद्यार्थियों को भी काम मिल गया, और वे अच्छी कमाई करने लगे।
नायक
कौस्तुभ के प्रयासों से कौस्तुभ के जिले के कई छात्रों को अच्छी नौकरी मिल गई। कौस्तुभ अपने जिले का हीरो बन गया।
नया लक्ष्य
कौस्तुभ का अब नया लक्ष्य था कि वह जिले के हर युवा को इकोहब में काम करने के लिए प्रोत्साहित करे। वह चाहता था कि हर युवा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
निष्कर्ष
कौस्तुभ की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है। यह हमें यह सिखाती है कि अगर हम मेहनत करें और अपने लक्ष्यों के लिए दृढ़ रहें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
D722कौस्तुभ: एक बागवान की कहानी
दुनिया 21वीं सदी में कदम रख रही थी, लेकिन भारत में अभी भी बेरोजगारी और गरीबी एक बड़ी समस्या थी।
गांवों से लोग शहरों की ओर भाग रहे थे, लेकिन वहां भी उनके लिए नौकरी की गारंटी नहीं थी।
कौस्तुभ का जन्म हुआ था जब दुनिया 20वीं सदी पूरी करके 21वीं सदी के स्वागत में खड़ी थी।
वह एक छोटे से गांव का रहने वाला था। उसके पिता किसान थे,कौस्तुभ की मां भी खेती में हाथ बटाती थीं। लेकिन खेती से कमाई कम होने के कारण उन्हें शहर में मजदूरी के लिये जाना पड़ता था।
गांवों में खेती नफा दे नहीं रही थी। लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे थे।
कौस्तुभ के गांव में भी ऐसा ही हाल था। गांव के जितने भी युवा थे, सब शहरों में नौकरी की तलाश में चले गए थे।
गांव में शादी करना मुश्किल हो गया था। लड़के वालों को लड़की मिल नहीं रही थी।
वह बचपन से ही मेधावी था, और उसे पढ़ाई में बहुत रुचि थी।
कौस्तुभ के माता-पिता चाहते थे कि वह भी शहर जाए और नौकरी करे।
कौस्तुभ के गांव में पढ़ाई-लिखाई का माहौल उतना अच्छा नहीं था। इसलिए कौस्तुभ ने शहर जाकर पढ़ाई करने का फैसला किया।
लेकिन जब वह बड़ा हुआ, तो उसे पता चला कि उसके लिए शहर में नौकरी पाना उतना आसान भी नहीं है।
नौकरी के नाम पर कोई भी लाखों की नौकरी देने वाला नहीं है। बस कुछ हजार, और ताजन्म जी हजूरी।
शहर में पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए कौस्तुभ को कोचिंग सेंटर में नौकरी करनी पड़ी।
कौस्तुभ ने देखा कि कोचिंग सेंटरों में बड़े-बड़े सपने दिखाकर छात्रों से पैसे वसूले जाते हैं। लेकिन छात्रों को नौकरी नहीं मिलती। कौस्तुभ को इस बात से बहुत दुख होता था।
कौस्तुभ का लक्ष्य
कौस्तुभ ने फैसला किया कि वह कुछ ऐसा करेगा जिससे गांव के लोगों को भी रोजगार मिल सके।
वह एक ऐसा बागवान बनना चाहता था, जो लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सके।
इसलिये कौस्तुभ ने इकोहब में इको-प्रसारक के रूप में काम करना शुरू किया। इकोहब एक ऐसी कंपनी का विपणन विभाग है जो पर्यावरण जागरूकता के क्षैत्र में लोगों को काम करने के अवसर प्रदान करती है।
कौस्तुभ का काम
कौस्तुभ का काम था कि वह जिले के ट्यूटरों को इकोहब के संदेश उनके पूर्व छात्रों में प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित करे। वह उन्हें बताता था कि कैसे उनके विद्यार्थियों को इकोहब के माध्यम से महीने भर के प्रशिक्षण के उपरांत काम मिल सकता है।
कौस्तुभ की बातों में कुछ कोचिंग सेंटरों के ट्यूटरों ने विश्वास किया। उन्होंने अपने छात्रों को इस विशेष कोर्स के बारे में बताया।
कौस्तुभ की सफलता
कौस्तुभ की मेहनत रंग लाई। जल्द ही कई ट्यूटरों ने इकोहब के संदेश उनके पूर्व छात्रों में प्रसारित करना शुरू कर दिया। उनके कई विद्यार्थियों को भी काम मिल गया, और वे अच्छी कमाई करने लगे।
कौस्तुभ ने अपने जिले के छात्रों को भी इस विशेष कोर्स के के लिए प्रोत्साहित किया। उसने उन्हें बताया कि इस विशेष कोर्स से उन्हें नौकरी मिल सकती है।
कौस्तुभ की बातों में छात्रों ने भी विश्वास किया। उन्होंने इस विशेष कोर्स के लिए आवेदन किया।
कौस्तुभ के प्रयासों से कौस्तुभ के जिले के कई छात्रों को अच्छी नौकरी मिल गई। कौस्तुभ अपने जिले का हीरो बन गया।
कौस्तुभ ने जिले के लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत बनने में मदद की। वह एक सफल इको-प्रसारक बन गया।
कौस्तुभ की प्रसिद्धि
कौस्तुभ की सफलता से जिले के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। वे कौस्तुभ को एक नायक के रूप में देखने लगे।
कौस्तुभ की संपत्ति
कौस्तुभ ने अपनी कमाई से एक नई कार खरीदी। वह अब एक अमीर आदमी बन गया था।
कौस्तुभ का नया लक्ष्य
कौस्तुभ का अब नया लक्ष्य था कि वह जिले के हर युवा को इकोहब में काम करने के लिए प्रोत्साहित करे। वह चाहता था कि हर युवा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
कौस्तुभ की कहानी का नैतिक
कौस्तुभ की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम मेहनत करें और अपने लक्ष्यों के लिए दृढ़ रहें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
कौस्तुभ की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है। यह हमें यह सिखाती है कि अगर हम मेहनत करें और अपने लक्ष्यों के लिए दृढ़ रहें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
E 889
कौस्तुभ जब पैदा हुआ था तब दुनिया 20 वी सदी पूरी करके 21वीं सदी के स्वागत में खड़ी थी।
शाइनिंग इंडिया के बावजूद वैश्विक मंदी का असर कौस्तुभ के देश के कृषि पर छाता जा रहा था।
ऐसे में गांव-गांव से लोग खेती छोड़ शहरों की ओर रोजगार के अवसर व उसके लिए आवश्यक शिक्षा को पकड़ने के प्रयास में बढ़ रहे थे।
स्थिति यह हो चुकी थी की जिसके एक से ज्यादा भाई थे, गांव में उसकी शादी होना ही दूभर होता जा रहा था ।
कौन मां बाप अपनी बेटी को उठा कर, जिंदगीभर की गरीबी के गड्ढे में धकेलने को तैयार होते?
देश में हर साल दो करोड़ बच्चे तो पैदा हो रहे थे, पर सारी नौकरियां, जिनमें नौकरी पर लगने से लेकर रिटायर होने के बीच 30 से 44 साल तक कमाई के शाश्वत अवसर होते हैं; सिर्फ तीन करोड़ से भी कम लोगों के लिए ही मुहैया थीं।
जिसका मतलब था 3 करोड़ भागित 44 साल। यानी किसी भी 1 साल में अधिकतम 7 लाख से कम लोगों को ही ऐसी नौकरी मिल पाती थी।
जबकि देश में गांवों की संख्या ही 6 लाख से ज्यादा है।
तो होता यह था, की आस पड़ोस के गांव में से किसी एक की ऐसी नौकरी लगी और बाकी के सारे युवा देखा-देखी उसकी नकल कर जवानी बर्बाद हो जाने तक; नौकरी के फॉर्म भरने और तैयारी करने में जुटे रहते।
स्थिति बिगड़ते बिगड़ते ऐसी हो गई, कि ढेर सारे ऐसे लोग, जो खुद नौकरी ना पा पाए; पर परीक्षा दे-दे कर इतने माहिर हो गए; कि दूसरों को परीक्षा दिलाने में अपनी फीस वसूलने की जुगाड़ बनाने लगे।
इस प्रकार कोचिंग सेंटरों का नया व्यवसाय शुरू हो गया।
यह स्थिति बिगड़ते बिगड़ते इतनी भयानक हो गई कि रोजगार मुहैया कराने के नाम पर चुनाव होने लगे। और संसद में आवाज उठाने के लिए युवा वर्ग को मच्छर मार धुआँ तक उड़ाना पड़ गया।
ठीक इसी दरम्यान कौस्तुभ ने ठान लिया एक बागवान बनने का।
बागवान यानी कि पर्यावरण का सबसे बड़ा सुधारक।
जैसे ऊबड़ खाबड़ जगह को ठीक करके बागवान, आर्थिक साम्राज्य की रचना करता है, वैसे ही कोस्तुभ ने बेरोजगार और कुंवारे युवाओं से भरे अपने जिले के, भविष्य को बदलने का बीड़ा उठाया इकोहब में इको-प्रसारक बनकर।
वह सारे कोचिंग, जो अभी तक बेरोजगारों को सपने दिखा कर; अपना पेट पाल रहे थे; उन्ही के नेटवर्क का उपयोग; कौस्तुभ ने युवाओं को; वास्तविक प्रगति में भागीदार बनाने के लिए; करना शुरू किया।
जैसे कंकड़ों में से बीज पहचानना एक बोरिंग सा काम होता है, वैसे ही सारे ट्यूटरों में से प्रगति मैं मददगार व्यक्ति ढूंढना भी एक महती काम था।
जिसके लिए कंपनी ने उसे 15 000 प्रतिमाह का स्टाइपेंड दे दिया।
हर जागरूक किसान जानता है बीज को उचित मात्रा में तापमान, आर्द्रता व ऑक्सीज़न मिलने पर उसमें अंकुर निकलने लगते हैं।
वैसे ही कौस्तुभ ने प्रतिदिन अपने इलाके के कंकड़-नुमा ट्यूटरों में से संभावित सहयोगी खौजने हैतु; सभी ट्यूटरों से मिलना शुरू किया।
उन्हें आवश्यक तापमान के तौर पर, उनकी और उनके पूर्व विद्यार्थियों की कमाई के अवसर की जानकारी दी।
आर्द्रता के रूप में पोर्टल पर यूजर आईडी बनाकर दिया।
आवश्यक ऑक्सीज़न के रूप में आवेदन की प्रक्रिया व उससे होने वाली आय के बारे में समझाया।
बीज को उचित आर्द्रता & तापमान मिलने पर उसमें अंकुरण आरम्भ हो जाता है। परन्तु कोई-कोई बीज अपने अंदर छिपी हुई घातक बीमारी, बैक्टीरिया या फफूंदी के कारण आर्द्रता मिलते ही सड़ना शुरू कर देते हैं।
जैसे सड़े बीज से अंकुरण होने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो जाती है, वैसे ही कुछ व्यक्ति उनके अंदर भरे हुए भय, दुश्चिंता और अनिश्चितताओं से डरकर नकारात्मकता बढ़ाते हुये श़क-सुबहे बनाने शुरू कर देते हैं।
कौस्तुभ को अपनी पहली मुलाकात में समझ में आने लगा; की कौन अंकुरित होने लायक है, और कौनसा बीज सड़ना आरम्भ कर चुका है
जैसे बीज अंकुरित होने के बाद पौधा बनना आरंभ होता है; वैसे ही कौस्तुभ को समझ में आने लगा; कि उसे किन से किसलिये दोबारा मिलना है?
जैसे बागवान अपनी जगह को नाप जो़खकर, कितनी दूरी पर, किस दिशा में कौन सा पौधा लगाना है; किसी अनुभवी विद्वान की मदद से यह निर्धारित करता है; उसी प्रकार कंपनी ने कौस्तुभ को कितने दिनों में कितनी बार, किस तरह के ट्यूटर से मिलना है, इसके बारे में खाका एक टेबल के द्वारा बता रखा था।
जिन्होंने सबसे पहले कौस्तुभ की बात मानकर, अपने पुराने विद्यार्थी समूह के व्हाट्सएप ग्रुप में; एडमिशन की सूचना शेयर की; उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी पुरानी मारुति बेच टोयोटा इनोवा हाइक्रॉस में घूमना शुरू कर दिया शान से।
जिन्होंने थोड़ा ढांढस कर, अपने गिने चुने खास-खास चहैतों के ग्रुप को लिंक भेज दिया, उन्होंने भी ₹2700 कमा ही लिए सिर्फ एक मैसेज; ग्रुप में फैला भर देने की दम पर।
जिन लोगों ने किंतु-परंतु किया था, वह अभी भी अपनी पुरानी खटारा से संतुष्ट थे।
वर्ष भर के अंदर कौस्तुभ, अपने जिले के 1800 व्यक्तियों के साथ वार्तालाप करके सम्भ्रान्त क्लब का अंग बन गया।
दूसरे साल से तो टोयोटा इनोवा हाइक्रॉस वाले गुरु जी के सानिध्य से, कौस्तुभ का जिले के धनाड्य वर्ग में मेलजोल भी बढ़ने लगा।
अब तो जिले का हर समृद्ध व्यक्ति, अपनी अगली पीढ़ी के लिए; नए अवसरों की खोज में कौस्तुभ को; अपनी पार्टियों में आग्रह पूर्वक बुलाकर; अपने बेटे-बेटियों से उनका परिचय; बड़े गर्वपूर्वक तरीके से कराने लगा है।
जहां हर कोई, अपने लायक नये अवसर की प्रतीक्षा में; उसकी बात बड़े ध्यान से सुनता है।